ये नूर, ये जुस्तजू, ये कैफियत किस खुदा की है,
रास्ते ही रास्ते हैं अब, मंजिलें गुमशुदा सी हैं ।
बेबाक निगाहों मे सिर्फ खौफ़ दिखाई देता है,
नींद भी पलकों से कुछ जुदा सी है।
लहू की तासीर नम हो चली है,
दिल की तबियत भी अब ग़म ज़दाह सी है।
ज़िन्दगी की जूस्तजू भी फंना हो गई,
शमा की रौशनी भी अब धुआं सी है।
आयना केह रहा मेरे अक्स से,
आज फिर से तेरी आँखें क्यूँ रुआँ सी हैं।
किस बुत को सुनाऊँ ये दास्ताँ, किस से फ़रियाद करूँ,
लोग कहते थे की ये हैसियत तो बस उस खुदा की है।
रास्ते ही रास्ते हैं अब, मंजिलें गुमशुदा सी हैं ।
बेबाक निगाहों मे सिर्फ खौफ़ दिखाई देता है,
नींद भी पलकों से कुछ जुदा सी है।
लहू की तासीर नम हो चली है,
दिल की तबियत भी अब ग़म ज़दाह सी है।
ज़िन्दगी की जूस्तजू भी फंना हो गई,
शमा की रौशनी भी अब धुआं सी है।
आयना केह रहा मेरे अक्स से,
आज फिर से तेरी आँखें क्यूँ रुआँ सी हैं।
किस बुत को सुनाऊँ ये दास्ताँ, किस से फ़रियाद करूँ,
लोग कहते थे की ये हैसियत तो बस उस खुदा की है।
its pretty soft,,heart tochin n romantic............
ReplyDeleteloved it although......las 4 lines ...mi fav...
well done djai....
hey..nice shayari....but what was the motivation behind this....
ReplyDelete@kamni... yaar motivation to pata nai.. bus ek jung jiska koi ant nai... jismai jeetne vala bhi mai hun aur jiss ki haar hai vo bhi mai hi hun...
ReplyDeletebadiya h --------------------- :-)
ReplyDelete